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गया में बन रही आदिवासी दुल्हनों की साड़ियां, कढ़ाई ऐसी कि उड़ीसा, बंगाल, असम, झारखंड तक है डिमांड

बिहार के गया में आदिवासी साड़ियां बन रही है। आदिवासी साड़ी के अलावे आदिवासी दुल्हन की भी साड़ी बन रही है।  वहीं, आदिवासी दूल्हे की भी धोती बन रही है। गया में पटवा टोली में बनने वाले इन आदिवासी दुल्हन की साड़ी और आदिवासी दुल्हे की धोती की कढ़ाई काफी आकर्षक होती है। यही वजह है, कि इसकी डिमांड उड़ीसा, बंगाल, असम और झारखंड तक होती है। गया के पटवाटोली में इन दिनों बड़े पैमाने पर आदिवासी दुल्हन की साड़ी और आदिवासी दूल्हे की धोती बन रही है।

बड़े पैमाने पर बन रही आदिवासी दुल्हन की साड़ियां
पटवा टोली में इन दिनों हैंंडलूूम और पावरलूम पर बड़े पैमाने पर आदिवासी दुल्हन की साड़ियां बन रही है। आदिवासी दुल्हन की साड़ियों की डिमांड काफी है। गया के पटवा टोली में कारीगर इस खूबसूरती से आदिवासी दुल्हन की साड़ियां बना रहे हैं, कि इसकी डिमांड कई दूसरे राज्यों से आ रही है। आदिवासी बहुल क्षेत्र से आदिवासी दुल्हन की साड़ियों की डिमांड लगातार आ रही है, जिसके बाद मांग को देखते हुए इसका निर्माण बड़े पैमाने पर कारीगर कर रहे हैं।

कारीगरों के हुनर के कारण ज्यादा डिमांड
तालकेश्वर प्रसाद बताते हैं, कि आदिवासी दुल्हन की साड़ी में कारीगर हुनर दिखाते हैं। आदिवासी दुल्हन की साङियों में लगने वाले मोर, बर्फी, मछली, डमरू की कढ़ाई इस बेहतरी से तरह करते हैं, कि एक बार जब साड़ी जिस राज्य में जाती है, तो पटवा टोली में बने आदिवासी साड़ियों की डिमांड वहां से काफी ज्यादा आती है। ऐसे में हमारे यहां बनने वाले आदिवासी दुल्हन की साड़ियों की डिमांड अब दूसरे राज्यों से ज्यादा आ रही है। सुंदरता और बेहतरीन कला से बनाए जा रहे हैं। साड़ियां कई राज्यों में बिक रहे हैं, जो कि मानपुर के पटवा टोली के होते हैं। वही, इस संबंध में दुकानदार बताते हैं, कि पटवा टोली में बनी आदिवासी दुल्हन की साङियां काफी बेहतरीन होती है। इसी के कारण कई राज्यों में इसकी सप्लाई हो रही है।

इस साङी के बिना दुल्हन मंडप में नहीं बैठ सकती
आदिवासी साड़ी बनाने वाले बुनकर तालकेश्वर प्रसाद बताते हैं, कि इस साङी की काफी महता है। इस साड़ी को पहने बिना आदिवासी दुल्हन मंडप में नहीं बैठ सकती है। आदिवासी दुल्हन की साड़ी में डिजाइन होती है। यह डिजाइन शुभ होती है। मोर, बर्फी, मछली, डमरू की डिजाइन होना जरूरी है। यदि यह डिजाइन न हो तो वह आम साङियों में होती है, जो दुल्हन नहीं पहन सकती है। दुल्हन के लिए डिजाइन वाली साड़ियों का होना जरूरी है।

उड़ीसा, बंगाल, असम, झारखंड भेजी जाती है साड़ियां
गया के मानपुर स्थित पटवा टोली में आदिवासी दुल्हन की साड़ी और आदिवासी दूल्हे की धोती बन रही है। हैंडलूम और पावरलूम दोनों से ही इसका निर्माण चल रहा है। हैंडलूम पर कई बुनकर रोजाना आदिवासी दुल्हन की साड़ियां और आदिवासी दूल्हे की धोती का निर्माण कर रहे हैं। हैंडलूम वाले आदिवासी दुल्हन की साड़ी की डिमांड ज्यादा है। यह इसलिए कि इसकी कढ़ाई काफी खूबसूरत होती है। एक दिन में सिर्फ एक कारीगर दो ही साड़ी बना पाते है। गया के पटवा टोली में खूबसूरत निर्माण का ही नतीजा है, कि यहां बनी साड़ियां बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, असम समेत कई राज्यों में जा रही है. रोजाना डिमांड आती है। रोजाना बनकर यहां से आदिवासी दुल्हन की साड़ियां हजारों की संख्या में सप्लाई की जाती है।

सामान्य साड़ी का भी होता है निर्माण
वहीं, पटवा टोली में आदिवासियों के लिए सामान्य साड़ी का भी निर्माण होता है। तालकेश्वर प्रसाद बताते हैं, कि हमारे यहां पंछी साड़ी भी बनती है, जो की 300 से 350 रुपए के बीच में बिक्री की जा रही है। वहीं, हम लोग जो आदिवासी लहंगा यानी कि आदिवासी दुल्हन की साड़ी जो बना रहे हैं, वह 500 रूपए में बेची जा रही है। इसके अलावे आदिवासी दूल्हे की भी धोती बना रहे हैं। आदिवासी दुल्हा की धोती की कीमत रु 250 होती है। तालकेश्वर प्रसाद बताते हैं, कि हैंडलूम हमारे यहां 10 पीस लगे हैं, जिस पर कारीगर काम करते हैं। एक कारीगर एक दिन में दो पीस आदिवासी साड़ी या आदिवासी धोती बना पाता है।

रोजाना 5000 की सप्लाई
बुनकर बताते हैं, कि पटवा टोली में इन दिनों बड़े पैमाने पर आदिवासी साड़ियों का निर्माण हो रहा है। आदिवासी धोती भी बना रहे हैं। आदिवासी दुल्हन साड़ियों की डिमांड ज्यादा आ रही है। प्रतिदिन 2000 आदिवासी दुल्हन की साड़ियों की सप्लाई की जा रही है। आदिवासी दुल्हन की साङी की कीमत रु 500 है। वही, आदिवासी दूल्हे के धोती की कीमत रु 250 है। वहीं, सामान्य तौर पर जो आदिवासी महिलाओं के लिए साड़ियां बनती है, उसकी कीमत 300 से 350 के बीच है।

 

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