लेखक: संजय कुमार पांडेय
यूं तो भारत में सनातन धर्म के लिए प्रतिदिन कोई ना कोई पर्व त्यौहार या उपवास व्रत रहता ही है इसीलिए तो भारत में प्रतिदिन सनातन धर्म वालों के लिए पूजा या अर्चना का दिन होता है। गुरुवार को सनातन धर्म मानने वाली स्त्रियां अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए जीवित्पुत्रिका का व्रत करेगी। यह व्रत बुधवार के दिन नहा खा से शुरू होगा तथा बुधवार को ही मध्य रात्रि के बाद अपने मरे हुए पूर्वजों को व्रतधारी स्त्रियां भोजन देती हैं जिसमें विशेष प्रकार की व्यंजन की तैयारी की जाती है। मुख्य रूप से चूरा दही पुआ, नोनी का साग इत्यादि अपने पुरखों को व्रतधारी स्त्रियां झिंगुनी के पत्ते पर अर्पित करती हैं। अपने पुत्र की रक्षा तथा लंबी आयु के लिए यह व्रत काफी प्रसिद्ध है।मुख्यरूप से इस व्रत में निर्जला (बिना पानी के) उपवास पूरे दिन किया जाता है और माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र, कल्याण के लिए मनाया जाता है। बिक्रम संवत के आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन-दिवसीय व्रत मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से नेपाल के मिथिला और थरुहट, भारतीय राज्यों में बिहार , झाड़खंड , उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के नेपाली लोगों द्वारा मनाया जाता है। इसके अलावा, यह व्यापक रूप से पूर्वी थारू और सुदूर-पूर्वी मधेसी लोगों द्वारा।भी मानाया जाता है।
एक नज़र इस व्रत पर-
नाम- जिऊतिया
उद्देश्य- बच्चों का कल्याण
आरम्भ- बिक्रम संवत में आश्विन की पहली छमाही का सातवाँ चंद्र दिवस
समापन- बिक्रम संवत में अश्विन की पहली छमाही का नौवां चंद्रमा दिवस तिथि
पर्व का सामान्य नाम- जीवित्पुत्रिका व्रत
नियम – व्रत के दिन सोया और कुछ खाया नहीं जाता है।
कथा का सारांश
सूत जी से समस्त ऋषियों एवं स्त्रियों के पूछने पर कि संसार में ऐसी कौन सा व्रत है जिसको करने से महिलाओं के संतान पुत्रों की लंबी आयु तथा कल्याण होगा एवं अकाल मृत्यु होने से रक्षा होंगी तो सुत जी ने कहा कि सतयुग में सत्य आचरण करने वाला जीमूत वाहन नामक राजा था। वह अपने पत्नी के साथ ससुराल गया और वहीं रहने लगा। एक दिन रात्रि में पुत्र के शोक से व्याकुल कोई स्त्री रोने लगी । उसका पुत्र जीवित नहीं था। जीमूतवाहन के पूछने पर उस स्त्री ने बताया कि प्रतिदिन गरुड़ आकर गांव के सारे लड़कों को खा जाता है। इस पर राजा ने कहा कि हे देवी तुम चिंता मत करो हम तुम्हारे पुत्रों को जीवित करने का प्रयास करते हैं ।उस राजा ने गरुड़ को बच्चे के स्थान पर अपने को ही खाने को दे दिया। राजा का बच्चे के प्रति ऐसी भावना देख गरुड़ जी भी प्रसन्न हुए । राजा से वरदान मांगने को कहा। राजा ने वरदान स्वरुप कहा कि हे पक्षीराज गरुड़! यदि आप मुझे वरदान देना चाहते हैं तो यह वरदान दीजिए कि, आपने अब तक जिन प्राणियों को खाया है वह सभी जीवित हो जाएं और आप अब से यहां बालकों को न खाएं और कोई ऐसा उपाय करें कि जहां जो उत्पन्न हुए हो वे बहुत दिनों तक जीवित रहे। वहां से गरुड़ जी ने अमृत लेकर उन मरे हुए बालकों के शरीर पर छिड़क कर उन्हे जिंदा किया। राजा भी प्रसन्नता पूर्वक वहां से चले गए।यह व्रत द्रोपदी ने भी किया था। इसी प्रकार और भी बहुत सारी कथाएं हैं जो बहुत विस्तार से कहा गया है सभी स्त्रियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।