बजट की घोषणा 23 जुलाई को होनी है। जिसके पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मोदी सरकार को सवालों के कटखरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने इस बात की चिंता जाहिर की है कि मोदी सरकार अपने तीसरी कार्यकाल के पहले बजट में बेरोजगारी, बढ़ती असमानता और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लगभग खत्म होने जैसी चिंताओं को कोई तव्वजों नहीं देगी। खरगे ने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर लिखा कि 17 जुलाई 2020 को प्रधानमंत्री ने देश को “मोदी की गारंटी” दी थी कि 2022 तक हर भारतीय के सिर पर छत होगी। ये “गारंटी” तो खोखली निकली। अब तीन करोड़ प्रधानमंत्री आवास देने का ढिंढोरा ऐसे पीट रहे हैं, जैसे पिछली गारंटी पूरी कर ली हो। खरगे ने लिखा कि देश असलियत जानता है। कांग्रेस का मानना है कि केंद्र की मोदी सरकार कुछ अमीर पूंजीपतियों के हित को देखते हुए इस बार भी बजट पेश करेगी।
साथ ही उन्होंने रोजगार के मुद्दे के पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा क्यों है कि आपने 10 वर्षों में 20 करोड़ नौकरियों का वादा कर, 12 करोड़ से ज़्यादा नौकरियाँ छीन ली ? आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार 2012 और 2019 के बीच में रोज़गार में 2.1 करोड़ की वृद्धि हुई, पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट कहती है कि ये वृद्धि केवल 2 लाख है, बल्कि दोनों ही रिपोर्टों का मुख्य स्त्रोत सरकारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण का सर्वे ही है। तो फ़िर सच्चाई क्या है?
कांग्रेस अध्यक्ष ने महिलाओं के मुद्दे पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि कांग्रेस पीएम मोदी के उस संबोधन की निंदा कर रही है, जिसमें पीएम ने कहा था कि कांग्रेस की सरकार बनी तो वह सभी की प्रॉपर्टी का सर्वे कराएगी। क्या ये सच नहीं है कि सरकारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण डाटा के मुताबिक़, जिसके स्त्रोत का आरबीआई हवाला दे रहा है, उसमें 37% ‘कामकाजी’ महिलाएं बिना वेतन के काम करनेवाली हैं ? ग्रामीण क्षेत्र में ये आँकड़ा 43% के भयावह स्तर पर है। खरगे ने कहा कि अगर आरबीआई का डाटा मान भी ले, तो ये कोई ख़ुशी की बात नहीं है कि महामारी के कारण जो फैक्ट्री-कर्मचारी, शिक्षक, छोटे दुकानदार आदि जैसे लोग अपने गाँव चले गए थे, उन्हें खेतिहर मज़दूर की तरह काम करना पड़ रहा है।