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हम त सूरज हईं निकलबे करब, जाईं समझा दीं, करिया बदरा के, काव्य संध्या में कविता के साथ ही…

वह तो पितृपक्ष में श्मशान घाट पर भी कवि सम्मेलन करवाते थे …। हम त सूरज हईं निकलबे करब, जाईं समझा दीं, करिया बदरा के। स्मृति काव्य-संध्या में बही कविता की रसधार …

गाजियाबाद: विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय महासचिव अरुणेश नीरन एवं भोजपुरी महासभा गाजियाबाद के अध्यक्ष अशोक श्रीवास्तव की पावन स्मृति में आयोजित काव्य-संध्या में देश के कोने-कोने से आये कवियों ने समां बांध दिया। गणपति फार्म हाउस, अवंतिका गाजियाबाद में आयोजित इस कवि सम्मेलन की अध्यक्षता मनु लक्ष्मी मिश्रा और सफल संचालन सुप्रसिद्ध कवि मनोज भावुक ने किया।

मनोज भावुक ने कार्यक्रम के शुभारंभ में ही अरुणेश नीरन और अशोक श्रीवास्तव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाश डाला। भावुक ने बताया कि अशोक जी तो कविता के इतने बड़े रसिक थे कि श्मशान घाट पर भी काव्य-पाठ करवाते थे। जिस हिंडन घाट पर उनकी अंत्येष्टि हुई, वहां हर साल पितृपक्ष में जलती चिताओं के बीच, गुजरती अर्थियों के पास कवि-सम्मेलन का संचालन मैंने किया है। उसी तरह अरुणेश नीरन जी थे। भोजपुरी आंदोलन के अगुआ होते हुए भी हिंदी-भोजपुरी को जोड़कर चलते थे। इन दोनों दिग्गजों के साथ मैंने 2014 व 2024 में मॉरीशस की यात्रा की है।

कार्यक्रम अध्यक्ष अजित दुबे और विशिष्ट अतिथि परितोष मणि त्रिपाठी, कुमार अनुपम श्रीवास्तव, बी डी शर्मा, बुध प्रकाश शर्मा व संजय चौधरी ने दिवंगत आत्मन को श्रद्धांजलि दी। कवि सम्मेलन का आरंभ युवा कवि कुंदन सिंह के शानदार गजल से हुआ। फिर केशव मोहन पांडेय, राजेश मांझी, देवकांत पांडेय, सरोज त्यागी, संतोष पटेल, संजय ओझा, राम प्रकाश तिवारी आदि कवियों ने समसामयिक और लोक राग की कविताएं सुनायीं। संचालक मनोज भावुक ने आत्मविश्वास से लबरेज मुक्तक कहा ‘केहू कब ले नकारी हमरा के, केहू कब ले सुनीं वो लबरा के, हम त सूरज हईं निकलबे करब, जाईं समझा दीं, करिया बदरा के।’

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों का सम्मान संस्था के महामंत्री जे पी द्विवेदी और टीम द्ववारा किया गया। सम्मान सत्र का संचालन विश्व भोजपुरी सम्मेलन गाजियाबाद इकाई के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने किया। कमलेश ओझा के गायन से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। सभी अतिथियों ने स्मृतिशेष अरुणेश नीरन और अशोक श्रीवास्तव जी को पुष्पांजली अर्पित की।

कौन हैं अरुणेश नीरन और अशोक श्रीवास्तव?

मनोज भावुक ने अपना संस्मरण सुनाते हुए बताया कि अरुणेश नीरन जी विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय महासचिव रहे और अपने जीवन काल में शानदार व ऐतिहासिक तीन दिवसीय राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विश्व भोजपुरी सम्मेलन आयोजित करते रहे। ऐसा आयोजन जिसमें राष्ट्रपति व राज्यपाल तक शिरकत करते थे। साल 2005 में जब मैंने भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ युगांडा’ (BAU ) की स्थापना की, तब उनके संपर्क में आया। BAU की रिपोर्ट संस्था की पत्रिका ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य’ में छापने के बाद उन्होंने मुझे पत्रिका का विदेश संपादक और साल भर बाद जब लंदन शिफ्ट हो गया तो विश्व भोजपुरी सम्मेलन की ग्रेट ब्रिटेन इकाई का अध्यक्ष बना दिया। इतना ही नहीं मुझ पर चंद्रेश्वर सर के लेख के साथ विशेष कवि के रूप में उन्होंने मुझे प्रकाशित किया।

उनसे पहली देखा-देखी 2008 में हुई, विश्व भोजपुरी सम्मेलन के BHU, बनारस अधिवेशन में। …और बिना जाँचे-परखे उन्होंने मुझे कई कार्यक्रमों का संचालन सौंप दिया। देश के शीर्ष कवियों के साथ काव्य-पाठ का अवसर दिया। …फिर तो आगे के लगभग सभी अधिवेशनों में यह सिलसिला चलता रहा। 2010 में मुझे विश्व भोजपुरी सम्मेलन की दिल्ली इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 2014 में मैंने नीरन जी के साथ मॉरिशस की न सिर्फ यात्रा की बल्कि अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन में उनके और मालिनी अवस्थी जी के साथ पैनलिस्ट रहा। अनेक बार टीवी चैनल्स पर उनका साक्षात्कार किया। मेरे चैनल अचीवर्स जंक्शन के वह अतिथि रहे। …उनकी जिंदगी का सबसे लंबा और महत्त्वपूर्ण इंटरव्यू अभी एडिट होना बाकी है, जिसमें भोजपुरी और भोजपुरिया दिग्गजों की अनेक रोचक कहानियां हैं।

उसके बाद मनोज भावुक ने अशोक श्रीवास्तव जुड़ा संस्मरण साझा किया और बताया कि अशोक श्रीवास्तव जी गाजियाबाद में भोजपुरी के सिरमौर रहे हैं। उनसे पहली मुलाकात 2010 में हुई। भोजपुरी महासभा के एक बड़े कार्यक्रम में उन्होंने मुझे सम्मानित किया। …प्रिय अनूप पाण्डेय ने उनसे मिलवाया था। उसके बाद से अशोक जी एक दोस्त, एक गार्जियन और एक शुभचिंतक की तरह जुड़ गए। उनके द्वारा आयोजित गाजियाबाद के लगभग सभी कार्यक्रमों में मेरी उपस्थिति अनिवार्य थी। कभी मुख्य अतिथि, कभी विशिष्ट अतिथि, कभी संचालक के रूप में। कवि-सम्मेलन का संचालन तो मैं ही करता था, गाजियाबाद में ही नहीं, उनके गाँव बेलसंड, गोपालगंज में भी। अशोक जी ने मेरे साथ दुबई ( 2019) और मॉरिशस ( 2025) की शानदार यात्रा भी की। वह उत्सवधर्मी थे, अति सामाजिक थे। हँसते-गाते, लोगों से मिलते-जुलते, उत्सव मनाते दुनिया से विदा हो गए। उनकी पूरी कहानी मेरे द्वारा लिए गए एक वीडियो-साक्षात्कार में कैद है। उनकी अंत्येष्टि के बाद श्रद्धांजलि सभा में वह वीडियो दिखाया भी गया था। गाजियाबाद में उनकी कमी खलती है।

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