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यूनिसेफ की इशा कुमारी ने जल, स्वास्थ्य और स्वच्छता का किया वॉश मूल्यांकन

स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में शुद्ध पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। क्योंकि भारत में स्वास्थ्य देखभाल में जल, सफाई और स्वच्छता (वॉश) की कमी से नवजात शिशुओं सहित अन्य बच्चों में कई प्रकार की बीमारियों का जन्म होता है। उक्त बातें यूनिसेफ द्वारा नामित इशा कुमारी ने सदर अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र का वॉश मूल्यांकन के दौरान कही।

छपरा, 07 जून। स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में शुद्ध पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। क्योंकि भारत में स्वास्थ्य देखभाल में जल, सफाई और स्वच्छता (वॉश) की कमी से नवजात शिशुओं सहित अन्य बच्चों में कई प्रकार की बीमारियों का जन्म होता है। उक्त बातें यूनिसेफ द्वारा नामित इशा कुमारी ने सदर अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र का वॉश मूल्यांकन के दौरान कही। उन्होंने यह भी कहा कि एनआरसी में अतिकुपोषित बच्चें और उसके माताओं सहित अन्य अधिकारी और कर्मियों को शुद्ध पेयजल की आपूर्ति में पानी की शुद्धता, परिसर में साफ-सफाई और स्वच्छता का जायजा लिया गया। क्योंकि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं अपने अतिकुपोषित बच्चों को लेकर एनआरसी में पोषित करने के लिए आती हैं तो उसका हर तरह से ख्याल रखने में वॉश यानी जल, स्वास्थ्य और स्वच्छता का पूरा ध्यान दिया जाता है।

इस दौरान यूनिसेफ की इशा कुमारी, डीपीएम अरविंद कुमार, एनआरसी के नोडल अधिकारी रमेश चंद्र कुमार, पीरामल स्वास्थ्य के रविश्वर प्रसाद, सिफार के धर्मेंद्र रस्तोगी, एनआरसी के प्रभारी पुष्पा कुमारी, पोषण विशेषज्ञ मनीषा कुमारी, जीएनएम ममता यादव, कुमारी अंजू, लीला कुमारी, मीनू यादव, सीबीसीई चंदन कुमार, सीटी आशिका कुमारी और लखपति सहित कई अन्य कर्मी उपस्थित थे।

जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम अरविंद कुमार ने कहा कि स्वास्थ्य संस्थान पर अवस्थित पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में वॉश मूल्यांकन को लेकर यूनिसेफ की इशा कुमारी के द्वारा सदर अस्पताल परिसर स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र का गहनता पूर्वक निरीक्षण किया गया है। क्योंकि चिकित्सकीय जटिल कुपोषित बच्चों का समुचित प्रबंधन के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र स्थापित किया गया है। जिसमें बच्चों को पोषण मुक्त कर सफलता पूर्वक इलाज किया जाता है। वॉश कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य अच्छी स्वच्छता प्रथाओं को बढ़ावा देकर मल- मौखिक रोग और रोग- वाहक संक्रमण के प्रसार को कम करना है। क्योंकि स्थानीय स्तर पर शुद्ध पेयजल और सफाई को लेकर पूरी तरह से ध्यान दिया जाता है। हालांकि भर्ती के समय नवजात शिशुओं का जन्म के साथ वजन, लंबाई व ऊंचाई के आधार पर उनके पोषण स्थिति की पहचान की जाती है। कुपोषित बच्चों की समय से पहचान कर उनका इलाज दो स्तर पर किया जाता है। उसके बाद उसको पोषित कर घर वापस भेजा जाता है।

पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) के नोडल अधिकारी रमेश चंद्र कुमार ने कहा कि कुपोषित बच्चों की समय पर पहचान कर अनिवार्य रूप से चिकित्सकीय सहायता प्रदान करने के लिए सदर अस्पताल परिसर में पोषण पुनर्वास केन्द्र (एनआरसी) का संचालन किया जाता है। सामान्य बच्चों की तुलना में गंभीर या अतिकुपोषित बच्चों की मृत्यु का खतरा नौ गुना अधिक होता है। लेकिन सौ में लगभग 85 प्रतिशत ऐसे कुपोषित बच्चे पाए जाते हैं, जिनका चिकित्सकीय सहायता सामुदायिक स्तर पर किया जा सकता है। हालांकि 10- 15 प्रतिशत बच्चों को ही पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) भेजने की जरूरत होती है। ऐसे बच्चों की समय से पहचान कर उनका इलाज करने से कुपोषण के कारण होने वाले बच्चों की मृत्यु को आसानी से खत्म किया जा सकता है। एनआरसी में फिलहाल 20 अतिकुपोषित बच्चों को रख कर पोषित किया जा रहा है।

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