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सूर्योपासना का प्रतीक: लोक आस्था का महापर्व छठ पर्व – प्रो० के० पी० श्रीवास्तव 

 
A Feature Article by Prof. K. P. Shrivastava, Principal Jagdam College, Chapra

सनातन भारतीय संस्कृति में सूर्य को जीवन और ऊर्जा का अक्षय स्रोत माना गया है। इसी कारण भारत में वैदिक काल से ही सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। बिहार में यह परंपरा “छठ व्रत” के रूप में आज भी जीवंत है। संस्कृत के शब्द “षष्ठ” (अर्थात् छठा दिन) से बना यह पर्व श्रद्धा, अनुशासन और तपस्या का अद्भुत संगम है।

🌞 व्रत का आध्यात्मिक स्वरूप

छठ व्रत केवल उपवास नहीं, बल्कि व्रत और उपवास का समन्वित रूप है — जिसमें शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि एक साथ साधी जाती है। इस व्रत में नियम, संयम और संकल्प का पालन अनिवार्य है।
उपवास के दौरान अन्न त्याग कर व्रती आत्म-चिंतन और परमात्मा के स्मरण में लीन रहते हैं।

🌺 छ: शक्तियों की उपासना — छठी मैया

शास्त्रों के अनुसार सूर्य की किरणों में छ: अप्रतिम शक्तियाँ विद्यमान हैं — दहनी, पचनी, धूम्रा, कर्षिणी, वर्षिणी और रसा। ये क्रमशः जलाने, पचाने, रंग देने, आकर्षण करने, वर्षा कराने और रस प्रदान करने की शक्तियाँ हैं।
इन्हीं दिव्य शक्तियों का प्रतीक स्वरूप छठी मैया की उपासना की जाती है। षष्ठी तिथि स्त्रीलिंग होने से ही यह पर्व “छठी मैया” के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

🪷 स्वच्छता से पवित्रता की ओर

यह पर्व स्वच्छता को पवित्रता तक ले जाने की प्रेरणा देता है।

  • पहला दिन – “नहाय-खाय”: स्नान द्वारा शरीर की शुद्धि और सात्विक आहार से व्रत का आरंभ।
  • दूसरा दिन – “खरना”: खीर बनाकर स्वयं ग्रहण कर उपवास को ऊर्जा प्रदान करना।
  • तीसरा दिन – “अर्घ्य”: षष्ठी की सन्ध्या को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर, सप्तमी की प्रभा की प्रतीक्षा।

यह क्रम पुनर्जन्म और नवजीवन की भावना को अत्यंत सरल और भक्ति-भाव से प्रकट करता है।

📜 शास्त्रीय दृष्टिकोण

विष्णु धर्मोत्तर पुराण में कहा गया है —
“उदिते दैवतं भानौ, पित्र्यं चास्तमिते रवौ।”
अर्थात् देव-कार्य सूर्योदय में और पितृ-कार्य सूर्यास्त में श्रेष्ठ माने गए हैं।
छठ पर्व ही एकमात्र ऐसा अवसर है जब दोनों कार्य — देव और पितृ — एक साथ श्रद्धा से संपन्न होते हैं।

🕉️ छठ पर्व की पौराणिकता एवं विशिष्टता

1️⃣ छठी मैया की उत्पत्तिरुद्र संहिता के अनुसार भगवान शिव के तेज से उत्पन्न छ: कृतिकाओं ने कार्तिकेय का पालन किया। वही कृतिकाएँ षष्ठी माता या छठी मैया कहलाती हैं।

2️⃣ सूर्यपुत्र कर्ण — घण्टों तक जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते थे। आज भी वही परंपरा छठ में जीवित है।

3️⃣ सुकन्या की तपस्या — च्यवन ऋषि की पत्नी सुकन्या ने अपने अंधे पति की आरोग्यता हेतु छठ व्रत किया, जिससे उन्हें नेत्र लाभ हुआ।

4️⃣ रामायण संबंध — ऋषि अगस्त्य ने भगवान राम को “आदित्य हृदय स्तोत्र” बताया था जिससे उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की।

5️⃣ राम-सीता का छठ व्रत — रामराज्य की स्थापना के दिन, कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने सूर्य उपासना की थी।

6️⃣ सांब की आरोग्यता — श्रीकृष्ण के पुत्र सांब का कुष्ठ रोग सूर्य उपासना से दूर हुआ।

7️⃣ कुंती और कर्ण — कुंती को सूर्यदेव से वरदानस्वरूप कर्ण की प्राप्ति हुई, जो सूर्य की जीवंत शक्ति का प्रतीक है।

8️⃣ द्रौपदी और अन्नपूर्णा — धौम्य ऋषि की सलाह पर युधिष्ठिर ने सूर्य स्तोत्र का पाठ किया, जिससे सूर्यदेव ने उन्हें “अक्षय पात्र” प्रदान किया।

🌼 सर्वजन का पर्व

छठ व्रत का सबसे बड़ा संदेश यह है कि हर व्यक्ति स्वयं अपना साधक और स्वयं अपना पुरोहित है। इसमें न जाति का बंधन है, न कोई पंडित की अनिवार्यता।
यह पर्व भक्ति, श्रम और स्वच्छता के माध्यम से सामूहिक एकता, आत्मबल और आस्था की शक्ति का उत्सव है।

🌄 निष्कर्ष

छठ केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति, विज्ञान और भक्ति का सुंदर समन्वय है —
जहां सूर्य की ऊर्जा, जल की शुद्धता, व्रती की निष्ठा और समाज की एकजुटता एक साथ झलकती है।

 

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