नमाज के बाद तकरीर में इमामों ने दिया अमन, शांति और भलाई का संदेश
छपरा 17 जून 2024। ईद-उल-अजहा हमें सब्र, सहनशीलता और त्याग के साथ अल्लाह की खुशी और देश की सुरक्षा व शांति के लिए सब कुछ कुर्बान करने का पैगाम देता है. ईद-ए-कुर्बां अमन, शांति और भलाई के कामों में बढ़चढ़कर कर हिस्सा लेते हुए एकता का संदेश देती है. ईद-उल-अजहा का उद्देश्य केवल जानवरों की कुर्बानी देना नहीं. बल्कि हर साल अपने कर्मों की समीक्षा कर उन बुराइयों को दूर करना है जो दूसरों को तकलीफ पहुंचाती हैं. ईद-उल-अजहा इस संकल्प को ताजा करने का दिन है कि हम इन्सानियत और देश की सुरक्षा के लिए किसी भी प्रकार का बलिदान करने से नहीं हिचकिचाएंगे. भले ही हमें किसी भी प्रकार की कठिनाइयों और संकटों का सामना करना पड़े. उक्त बातों का इजहार बकरीद की नमाज के बाद आयोजित खुतबा (तकरीर) में इमाम और ओलेमा ने किया.
सुबह से था नूरानी माहौल
जिला भर के ईदगाहों और मस्जिदों में बकरीद के नमाज के अलग-अलग समय मुकर्रर किये गये थे. जो सुबह छः बजे से 10 बजे के बीच थे. कुर्ता-पजामा और टोपी में सजे इत्र की महक उड़ाते लोगों का हुजूम जब मस्जिदों और ईदगाहों की तरफ निकला तो माहौल नूरानी हो उठा. ईद की नमाज के बाद लोगों ने एक दूसरे को गले लगा कर जब मुबारक बाद देना शुरू किया तो मुहब्बत और भाइचारे का खुशनुमा दृश्य पैदा हो गया. ईदगाह और मस्जिदों से लौटने के बाद लोगों ने कुर्बानी की. इस दौरान कुर्बानी करने और चमड़े एकत्र करने के लिए मदरसा और अनाथालयों के कार्यकर्ता काफी व्यस्त दिखे. जिसके कारण मुहल्ले और सड़कों पर गहमा गहमी बनी रही. शाम में लोग एक दूसरे के यहां घूमने निकले. बच्चों और युवाओं के कारण खूब रौनक रही.
सुन्नत-ए-इब्राहीम है कुर्बानी
पैगंबर हजरत इब्राहीम हमेशा बुराई की मुखालफत की. उनके जीने का मकसद ही जनसेवा था. 90 साल की उम्र तक उनकी कोई औलाद नहीं हुई तो उन्होने खुदा से दुआ की तब जाकर उन्हें बेटे इस्माईल की प्राप्ति हुई. उन्हें सपने में आदेश आया कि खुदा की राह में कुर्बानी दो. उन्होंने कई तरह की कुर्बानी दी, लेकिन सपने उन्हें आने बंद नहीं हुए. उनसे सपने में कहा गया कि तुम अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दो. तब उन्होंने इसे खुदा का आदेश माना और इस्माईल की कुर्बानी के लिए तैयार हो गए. ऐसा कहा जाता है कि हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं. इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. लेकिन जब उन्होंने पट्टी खोली तो देखा कि बलि वेदी पर उनका बेटा नहीं. बल्कि दुंबा था और उनका बेटा उनके सामने खड़ा था. विश्वास की इस परीक्षा के सम्मान में दुनिया भर के मुसलमान इस अवसर पर अल्लाह में अपनी आस्था दिखाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं.
इस्लाम में त्याग का सर्वाधिक महत्व
मानव जीवन में प्रत्येक त्योहार किसी घटना का स्मरण कराता है. ईद-उल-अजहा भी इसी की बानगी है. जब एक पिता ने ईश्वरीय आदेश के लिए अपने सबसे प्रिय की कुर्बानी पेश की. वास्तव में इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम और अंतिम जिल-हिज्ज दोनों त्याग और बलिदान का प्रतीक हैं. ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा को सामान्यत: कुर्बानी या बकरीद के नाम से भी जाना जाता है. यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों ही धर्म में पैगंबर इब्राहीम (अस) का वर्णन है. दुनियाभर के मुस्लिम हज के अवसर पर मक्का जाते हैं. इस दौरान वे पैगंबर इब्राहीम की सुन्नत अदा करते हैं.