छपरा, 13 जून 2024। विश्व रक्तदाता दिवस प्रत्येक वर्ष 14 जून को मनाया जाता है। लेकिन प्रत्येक वर्ष अलग-अलग थीम के तहत विश्व रक्तदाता दिवस का आयोजन किया जाता है। हालांकि इस बार “दान का जश्न मनाने के 20 साल: धन्यवाद, रक्तदाताओं!” थीम के साथ 20 वीं वर्षगांठ मनायी जा रही है। विश्व रक्तदाता दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में स्वैच्छिक, अवैतनिक रक्तदाताओं के महत्वपूर्ण योगदान को उजागर करना, राष्ट्रीय और स्थानीय अभियानों को मजबूत कर स्वैच्छिक रक्तदाता कार्यक्रमों को मजबूत और विस्तारित करने में राष्ट्रीय रक्त आधान (ट्रान्सफ्यूजन) सेवाओं, रक्त दाता संगठनों और अन्य गैर सरकारी संगठनों का समर्थन कराना है। विश्व रक्तदाता दिवस के अवसर पर जिलेवासियों से अपील की जाती है कि इस मौके पर रक्तदान केंद्र में स्वैक्षिक रूप से और अन्य सामाजिक संगठनों द्वारा रक्तदान कर रक्त केंद्र में रक्त संग्रह को बढ़ाने और इसकी आवश्यकता वाले लोगों तक उपलब्धता सुनिश्चित कराने में अपना अहम योगदान करें।
रक्त केंद्र के प्रयोगशाला प्रैवैधिक धर्मवीर कुमार ने बताया कि खून की कमी से होने वाली मृत्यु दर को कम करने में लगे रक्तवीरों को स्वास्थ्य विभाग सम्मानित भी कर रहा है। साथ ही थैलेसिमिया, स्किल सेल एनीमिया व हीमोफीलिया सहित कई अन्य प्रकार की स्वास्थ्य प्रक्रियाओं में रक्त की आवश्यकता को पूरा करने के लिए लोगों को रक्तदान के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसी के मद्देनजर आज पूरी दुनियां में रक्तदान करने वालों के सम्मान में विश्व रक्तदाता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस बार भी 16 रक्त दाताओं की सूची विभाग को भेजी गई है। जिन्होंने एक वर्ष में पुरुष 4 बार तो महिला 3 बार स्वैक्षिक रूप से रक्तदान कर दूसरे की जान बचाई है। वैसे रक्तवीरों को स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्रशस्ति पत्र और मेडल पहनाकर सम्मानित किया जाता है।
रक्त केंद्र की नोडल अधिकारी सह महिला रोग विशेषज्ञ डॉ किरण ओझा ने बताया कि एक स्वस्थ्य व्यक्ति 18 साल की उम्र के बाद स्वैक्षिक रक्तदान कर सकता है। लेकिन उसका वजन 50 किलोग्राम या इससे अधिक होना चाहिए। रक्तदान करने वाला व्यक्ति कैंसर, हृदय रोग, किडनी रोग, मिर्गी, ग्रंथि रोग से प्रभावित नहीं होना चाहिए। साथ ही एचआईवी, डेंगू, मलेरिया, हेपेटाइटिस बी या सी से ग्रसित व्यक्ति सिजनोफ्रेनिया या मधुमेह वाले लोग भी रक्तदान नहीं कर सकते हैं। वहीं महिलाएं भी एक साल के अंदर तीन बार रक्तदान कर सकती हैं। लेकिन बच्चों को स्तनपान कराने वाली महिलाएं व मासिक चक्र से गुजर रहीं महिलाएं रक्तदान नहीं कर सकती है।
सिविल सर्जन डॉ सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि लोगों में इस बात का भ्रम रहता है कि रक्तदान करने से कमजोरी होती है। लेकिन ऐसा सोचना बिल्कूल सही नहीं है। क्योंकि यह किसी कमजोरी का कारण नहीं बनता है। बल्कि नई रक्त कोशिकाओं के बनने से यह आपको स्वस्थ्य रखता है। इसके साथ ही रक्तदाताओं को हार्ट अटैक व कैंसर के खतरे सहित कई अन्य प्रकार बीमारियां अपेक्षाकृत कम होती है। रक्त पतला होने से रक्त का थक्का नहीं बनता है। वही नसों में इसका प्रवाह अधिक सुगमता से होता है। सबसे अहम बात यह है कि रक्तदान करने वालों को मानसिक रूप से शांति का भी एहसास होता है। रक्तकेंद्र में रक्तदान से पूर्व अधिकारी या कर्मियों द्वारा रक्तदाताओं को जांच प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। जिसमें हीमोग्लोबिन जांच, उच्च रक्तचाप, वजन, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, एचआईवी, सिफलिस और मलेरिया की जांच मुख्य रूप से शामिल है। ताकि इससे रक्तदाताओं को संभावित बीमारियों की जानकारी भी मिल जाती है। ताकि समय रहते रक्तदाता अपना इलाज करा सके।
रक्तदान दिवस का मुख्य उद्देश्य: उन लाखों स्वैच्छिक रक्तदाताओं को धन्यवाद दें और उनका सम्मान करें जिन्होंने दुनिया भर में लाखों लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण में योगदान दिया है।
राष्ट्रीय रक्तदान कार्यक्रमों की उपलब्धियों और चुनौतियों को प्रदर्शित करना तथा सर्वोत्तम प्रथाओं और सीखों को साझा करना।
सुरक्षित रक्त आधान तक सार्वभौमिक पहुंच प्राप्त करने के लिए नियमित, अवैतनिक रक्तदान की निरंतर आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
युवा लोगों और आम जनता के बीच नियमित रक्तदान की संस्कृति को बढ़ावा देना और रक्तदाता पूल की विविधता और स्थिरता को बढ़ाना।
रक्तदान करने वालें रखें ध्यान:
रक्तदान से तीन घंटे पहले पौष्टिक आहार लें।
रक्तदान के बाद अच्छी तरह भोजन करें।
मसालेदार व तली भुनी चीज नहीं खाए।
शराब, धूम्रपान व तंबाकू सेवन से बचें।
मेडिकल जांच के बाद ही रक्तदान करें।
रक्तदान के बाद अच्छी नींद जरूर लें।