राजगीर, 18 जून, 2025: पिछले एक साल में, नालंदा विश्वविद्यालय ने ज्ञान, संवाद और विरासत के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। 19 जून, 2024 को भारत के माननीय प्रधानमंत्री द्वारा विश्वविद्यालय के नए परिसर के उद्घाटन के बाद से, नालंदा ने खुद को एक वैश्विक शिक्षा और अनुसंधान केंद्र के रूप में तेजी से स्थापित किया है। यह प्रगति शैक्षणिक विकास, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और आधुनिक बुनियादी ढांचे के विस्तार के माध्यम से हुई है।
शैक्षणिक विस्तार और अनुसंधान में वृद्धि
नालंदा विश्वविद्यालय ने पिछले एक वर्ष में छह नए परास्नातक (मास्टर) कार्यक्रम शुरू किए हैं। इनमें से दो पिछले शैक्षणिक सत्र में शुरू हुए थे और चार इस वर्ष से शुरू हो रहे हैं। इसके अलावा, विश्वविद्यालय ने पोस्ट-डॉक्टोरल फेलोशिप की शुरुआत की है, जिससे इसकी अकादमिक क्षमताएं और मजबूत हुई हैं। यह कदम नालंदा को एक प्रमुख शोध और उच्च शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करने में सहायक है।
वैश्विक साझेदारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
विश्वविद्यालय ने अपनी वैश्विक पहुंच को गहरा करते हुए लगभग बीस नए समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। पिछले वर्ष, सलामांका विश्वविद्यालय (स्पेन), केलानिया विश्वविद्यालय (श्रीलंका), और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जैसे प्रमुख वैश्विक संस्थानों के साथ नौ द्विपक्षीय समझौता ज्ञापन हुए। आसियान-भारत विश्वविद्यालय नेटवर्क के एक नोडल संस्थान के रूप में, नालंदा ने आईआईटी कानपुर, आईआईटी रुड़की, इंडोनेशिया विश्वविद्यालय, मलाया विश्वविद्यालय और चियांग माई विश्वविद्यालय, थाईलैंड जैसे आसियान और भारत के प्रमुख संस्थानों के साथ 11 और समझौता ज्ञापन स्थापित किए हैं।
विविधतापूर्ण छात्र समुदाय और छात्रवृत्ति के अवसर
वर्तमान में, नालंदा विश्वविद्यालय में 21 विभिन्न देशों के 400 से अधिक नियमित छात्र परास्नातक और पीएचडी कार्यक्रमों में नामांकित हैं, जबकि 800 से अधिक छात्र अल्पकालिक पाठ्यक्रमों में संलग्न हैं, जिससे कुल छात्रों की संख्या 1,200 से अधिक हो गई है। पिछले वर्ष छात्र नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, और पहली बार विश्वविद्यालय ने कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) के माध्यम से छात्रों को प्रवेश दिया है।
नालंदा की सशक्त छात्रवृत्ति प्रणाली विश्वभर के छात्रों के लिए नए अवसर खोल रही है। 2024 में ही, सैकड़ों छात्रों ने ASEAN फैलोशिप, BIMSTEC और ICCR स्कॉलरशिप जैसी योजनाओं का लाभ उठाया है। इसके अलावा, NU-भूटान छात्रवृत्ति जैसी विशेष पहलें भी लागू की गई हैं, जो भिक्षुओं, भिक्षुणियों और शोधकर्ताओं को समावेशी अकादमिक दृष्टिकोण के तहत सहयोग प्रदान करती हैं।
स्थायी परिसर का विकास और पर्यावरण प्रतिबद्धता
राजगीर स्थित विश्वविद्यालय के स्थायी परिसर का विकास भी तेज़ी से हुआ है। नए अकादमिक भवन, छात्रावासों और पर्यावरण अनुकूल अधोसंरचना के निर्माण ने पूरे शैक्षणिक वातावरण को बेहतर और प्रेरणादायक बना दिया है। यह विकास विश्वविद्यालय की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता और सतत विकास के संकल्प को भी दर्शाता है।
नए कुलपति के नेतृत्व में नई ऊर्जा
हाल ही में, प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी को पूर्णकालिक कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया है, जिससे विश्वविद्यालय को एक नई ऊर्जा और दिशा मिली है। प्रोफेसर चतुर्वेदी एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री, नीति विशेषज्ञ और ‘विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली’ (RIS) के महानिदेशक हैं। उन्होंने अर्थशास्त्र, कूटनीति और विकास अध्ययन पर 22 से अधिक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं।
प्रोफेसर चतुर्वेदी ने पिछले वर्ष की प्रगति पर टिप्पणी करते हुए कहा, “यह वर्ष नालंदा के इस नए अवतार के लिए एक ऐतिहासिक वर्ष सिद्ध हुआ है। विश्वविद्यालय एक नए संदर्भ में नालंदा ज्ञान परंपरा के पुनरुद्धार हेतु प्रतिबद्ध है जिससे कि यह सर्वोत्कृष्ट वैश्विक शिक्षा केंद्र बने।
विश्वविद्यालय धीरे-धीरे उस दृष्टिकोण को साकार कर रहा है, जिसमें यह प्राचीन ज्ञान पर आधारित, समकालीन यथार्थ से जुड़ा, और भविष्य निर्माण हेतु प्रतिबद्ध एक वैश्विक शिक्षा केंद्र बने। हम शैक्षणिक उत्कृष्टता, अंतर-सांस्कृतिक संवाद, और भावी पीढ़ियों के लिए नए मार्ग निर्माण हेतु प्रतिबद्ध हैं।”
नालंदा विश्वविद्यालय ने एक अग्रणी ज्ञान केंद्र के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान विकसित की है, जिसे अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे और विशिष्ट संकाय द्वारा संचालित एक जीवंत शैक्षणिक वातावरण प्राप्त है। प्रधानमंत्री द्वारा स्थायी परिसर की यात्रा और उद्घाटन ने विश्वविद्यालय की वैश्विक महत्ता को पुनः पुष्ट किया, यह याद दिलाते हुए कि नालंदा केवल भारत की ही नहीं, बल्कि एशिया और उससे परे अनेक देशों की साझा सांस्कृतिक विरासत है।