मिथिला की गौरवशाली भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए स्थापित मैथिली अकादमी में ताला लग जाना गंभीर चिंता का विषय बन गया है। वर्ष 1976 से मैथिली भाषा, साहित्य और शोध का केंद्र रही यह अकादमी आज सरकारी उदासीनता और प्रशासनिक लापरवाही के कारण बंद पड़ी है, जिसे मिथिला समाज ने भाषा–संस्कृति पर सीधा हमला बताया है।
मिथिला स्टूडेंट यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विद्या भूषण राय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि मैथिली अकादमी एकमात्र ऐसी भाषाई अकादमी है, जिसकी प्रकाशित पुस्तकों को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है। अब तक अकादमी द्वारा लगभग 213 पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है, जो बिहार सहित देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में शामिल हैं। इसके बावजूद कर्मचारियों की भारी कमी और प्रतिनियुक्ति के नाम पर अकादमी को पंगु बना देना सरकार की मैथिली-विरोधी मानसिकता को उजागर करता है।
उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को अन्य संस्थानों में प्रतिनियुक्त किए जाने के कारण अकादमी में ताला लगना पूरे मिथिला समाज का अपमान है। इससे न केवल शोधार्थी और विद्यार्थी प्रभावित होंगे, बल्कि मैथिली भाषा के भविष्य पर भी गहरा संकट उत्पन्न हो गया है।
विद्या भूषण राय ने बिहार सरकार और उच्च शिक्षा विभाग से मांग की कि मैथिली अकादमी से अविलंब ताला हटाया जाए, स्थायी कर्मचारियों की बहाली सुनिश्चित की जाए, अकादमी को पर्याप्त बजट और प्रशासनिक सहयोग दिया जाए तथा मैथिली भाषा और साहित्य के संरक्षण के लिए ठोस और दीर्घकालिक नीति बनाई जाए।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि शीघ्र सकारात्मक निर्णय नहीं लिया गया, तो मिथिला स्टूडेंट यूनियन राज्यव्यापी आंदोलन के लिए बाध्य होगी, जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।



