केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग तथा कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने शनिवार को नई दिल्ली में कहा, “भारत का अपना खुद का डीप सी मिशन शुरू करने वाला छठा देश बनना तय है।”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की 100 दिवसीय कार्य योजना पर चर्चा के लिए आयोजित बैठक की अध्यक्षता करते हुए डीप सी मिशन की प्रगति पर गर्व और प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि भारत इस उपलब्धि को प्राप्त करने वाले कुछ ही देशों में से एक है। उन्होंने संस्थानों से कहा कि वे आजीविका के लिए समुद्र और उसकी ऊर्जा पर निर्भर लोगों को सशक्त बनाने के लिए एक लचीली नीली अर्थव्यवस्था (ब्लू इकोनॉमी) अर्जित करने पर ध्यान केंद्रित करें। डीप सी मिशन की रूपरेखा तैयार करते हुए उन्होंने कहा, ” यह मिशन केवल खनिज अन्वेषण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समुद्री विज्ञान का विकास और वनस्पतियों तथा जीव-जंतुओं की खोज और समुद्री जैव विविधता का संरक्षण आदि भी इसमें शामिल है।”
केंद्रीय मंत्री ने मत्स्ययान 6000 के विकास के लिए राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) के प्रयासों की सराहना की, जो समुद्र में 6000 मीटर गहराई तक जा सकता है। प्रगति का जायजा लेते हुए उन्होंने अधिकारियों को सितंबर 2024 तक हार्बर ट्रेल के पहले चरण और 2026 तक बाद के परीक्षण पूरे करने का निर्देश दिया।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ मिलकर ‘टाइटेनियम हल’ विकसित करके अत्यधिक दबाव को सफलतापूर्वक झेलने के लिए काम करने के लिए उनकी सराहना की। उन्होंने आपातकालीन स्थितियों से निपटने और 72 घंटे तक पानी में रहने के लिए ‘सेल्फ-फ्लोटेशन’ तकनीक के विकास के बारे में भी जानकारी ली। कुछ मुख्य बातें यान के 4 घंटे के अवतरण की प्रगति से संबंधित थीं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस मिशन के वनस्पतियों और जीवों, गहरे समुद्र में अन्वेषण, दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के वाणिज्यिक दोहन, भारतीय समुद्र तल में धातुओं और पॉलीमेटेलिक पिंडों की खोज और अन्वेषण पर पड़ने वाले बहुआयामी प्रभाव को रेखांकित करते हुए कहा, “डीप सी मिशन में भारतीय अर्थव्यवस्था के समग्र विकास में अत्यधिक योगदान देने की क्षमता है।” उन्होंने उन्होंने वैज्ञानिकों और अधिकारियों को स्वदेशी तकनीक और क्षमता विकसित करने तथा भारत की निर्भरता को कम करने के लिए निर्देशित और प्रेरित भी किया।
इस बैठक में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम रवि चंद्रन और अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।