गले में गिल्टी की शिकायत होने पर उसका इलाज कराया। लेकिन जब ठीक नही हुआ तो ऑपरेशन कराया गया। ऑपरेशन के बाद उसको जांच के लिए भेजा गया। जब जांच रिपोर्ट आया तो पता चला कि टीबी हुई है। हालांकि उसके बाद 03 जनवरी 2024 से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मांझी से दवा शुरू कराई गई है। उक्त बातें मांझी नगर पंचायत के वार्ड सख्या 09 के गोरापर निवासी लखीचंद यादव के 23 वर्षीय पुत्र राजेश यादव ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मांझी के सभागार में आयोजित फूड बास्केट वितरण समारोह सह जागरूकता अभियान के दौरान कही।
इस दौरान मांझी सीएचसी के एमओआईसी डॉ रोहित कुमार, डॉ अभिषेक आशुतोष, बीएचएम राममूर्ति, बीएमएनई राकेश कुमार, बीसीएम विवेक कुमार व्याहुत, एसटीएस राजीव कुमार, यक्ष्मा सहायक कृष्ण कुमार, एलटी मिथिलेश कुमार और तनवीर आलम, एक्सरे टेक्निशयन राज कुमार साह सहित कई अन्य अधिकारी और कर्मी उपस्थित थे।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मांझी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ रोहित कुमार ने बताया कि विगत फरवरी महीने से प्रखंड के 41 टीबी मरीजों के बीच विभिन्न अधिकारी और कर्मियों द्वारा गोद लिया गया था। जिसको प्रत्येक महीने फूड बास्केट का वितरण किया जाता है। हालांकि अब मात्र दो महीने शेष बचा हुआ है। क्योंकि लगातार चार महीने से पौष्टिक आहार के रूप में पोटली का वितरण किया जाता रहा है। फिलहाल 41 टीबी रोगियों को दवा खाने के साथ ही पौष्टिक आहार के लिए विभिन्न तरह की खाद्य सामग्रियों का वितरण किया जाता है। जिसमें से बहुत से मरीज पूरी तरह से ठीक तो नही हुए हैं बल्कि पहले की अपेक्षा बहुत सुधार हुआ है। जिसमें मुख्य रूप से स्थानीय नगर पंचायत के राजेश यादव है। जनवरी महीने में इनका वजन 49 किलोग्राम था लेकिन इन चार महीने में लगभग 56 किलोग्राम के आसपास हो गया है। क्योंकि नियमित रूप से दवा सेवन के साथ ही पौष्टिक आहार का ले रहे हैं। इसी तरह से अधिकांश टीबी रोगी पहले से तंदुरुस्त और स्वास्थ्य हो रहे हैं।
जिला संचारी रोग पदाधिकारी डॉ रत्नेश्वर प्रसाद सिंह द्वारा टीबी से बचाव को लेकर जिलेवासियों से अपील करते हुए कहा कि दो सप्ताह या इससे अधिक दिनों तक खांसी रहने की स्थिति में नजदीकी स्वास्थ्य के केंद्र के चिकित्सकों से दिखाएं। जब तक बीमारी ठीक नहीं हो जाए तब तक दवा खाना चाहिए। बीच में किसी में हाल में दवा नहीं छोड़ना चाहिए। लेकिन अगर किसी कारणवश दवा छोड़ने की नौबत सामने आए तो अनिवार्य रूप से चिकित्सकों से सलाह लेना नहीं भूलें। क्योंकि टीबी एक संक्रमण बीमारी तो है ही लेकिन इसका इलाज समय पर किया जाए। तो मरीज फिर से अपनी नई जिंदगी जी सकता है। यानि कि वह फिर से दैनिक दिनचर्या में अपनी जिंदगी व्यतीत कर जा सकता है।