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भारत सरकार को इस बार जाति जनगणना कराना ही होगा: प्रो० डी०एम० दिवाकर

भारत में जाति जनगणना और सामाजिक परिवर्तन' विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के वक्ताओं की एकमत राय है कि भारत की सरकार को इस बार सामान्य जनगणना के साथ जातिगत जनगणना कराना ही होगा। सेमिनार के मुख्य वक्ता और देश के प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. डी. एम. दिवाकर ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर भारत सरकार जातिगत जनगणना नहीं कराती है तो संभव है कि केन्द्र की सरकार गिर जाए और देश मध्यावधि चुनाव में चला जाए।

छपरा : ‘भारत में जाति जनगणना और सामाजिक परिवर्तन’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के वक्ताओं की एकमत राय है कि भारत की सरकार को इस बार सामान्य जनगणना के साथ जातिगत जनगणना कराना ही होगा। सेमिनार के मुख्य वक्ता और देश के प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. डी. एम. दिवाकर ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर भारत सरकार जातिगत जनगणना नहीं कराती है तो संभव है कि केन्द्र की सरकार गिर जाए और देश मध्यावधि चुनाव में चला जाए। उन्होंने आगे कहा कि इस देश का 80 प्रतिशत आवाम जातीय जनगणना के पक्ष में है। इस माँग के पीछे इस देश के करोड़ों-करोड़ लोगों की आशा और उत्कंठा है।

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का विधिवत शुभारंभ अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ, जिसमें प्रमुख रूप से पूर्व सासंद अली अनवर अंसारी, मुख्य अतिथि प्रो. वीरेन्द्र नारायण यादव, संरक्षक डॉ. लालबाबू यादव, पूर्व मंत्री उदित राय, पाटलिपुत्रा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, रिसर्च, दिल्ली के मानद निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार, अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक महासंघ के महासचिव प्रो. अरुण कुमार ने भाग लिया।

अपने बीज वक्तव्य में पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि औपनिवेशिक काल में 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी और पुनः 1941 में जातीय जनगणना तो कराया गया परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जनगणना के आँकड़ों को प्रकाशित नहीं किया गया। स्वतंत्र भारत में काका कालेलकर आयोग ने जातियों की गणना खासकर पिछड़ी जातियों की गणना तो किया परन्तु तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने उसे लागू नहीं किया। अंततः मोरारजी देसाई की सरकार में गठित बी. पी. मण्डल आयोग ने पिछड़ों की सूची बनाई, जिसे 1990 में वी. पी. सिंह की सरकार में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान के साथ लागू अवश्य किया परन्तु भाजपा के समर्थन वापस लेने चलते तत्कालीन सरकार गिर गई। पुनः 2011 की जनगणना में जातियों की गणना तो की गई, परन्तु मनमोहन सिंह की सरकार ने आंकड़ों को प्रकाशित नहीं किया। तब से लेकर अभी तक जाति जनगणना की माँग हर स्तर पर होती रही है।

बिहार में एक कदम आगे बढ़कर पिछले साल सरकार द्वारा जाति सर्वेक्षण कराया गया, जिसे न्यायालय में चुनौती दी गई और इसके आधार पर बढ़ाए गए आरक्षण को तकनीकी कारणों से उच्चतम न्यायालय ने रद्द किया। उन्होंने आगे कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि इस वर्ष के राष्ट्रीय दसवार्षिक जनगणना में जाति की गणना के कॉलम को सम्मिलित किया जाए ताकि आँकड़े स्पष्ट हो सकें।

संगोष्ठी के प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. डी. एम. दिवाकर ने की, जिसमें डॉ. मृत्युंजय कुमार, डॉ. चन्दन कुमार श्रीवास्तव, डॉ. शुभमीत कौशिक, डॉ. राहुल कुमार मौर्या, डॉ. राकेश रंजन एवं डॉ. मनोज प्रभाकर ने अपनी-अपनी प्रस्तुतियां दी। सेमिनार के दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के राजनीति विज्ञान विभागध्यक्ष प्रो. बिभु कुमार ने की, जिसमें अनिल कुमार, डॉ. संदीप कुमार यादव, डॉ. शिवम चौधरी, डॉ. विजया विजयन्ती, डॉ. सुधीर कुमार एवं जी. शंकर ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये।

प्रारम्भ में संगोष्ठी के सह संयोजक डॉ. दिनेश पाल संगोष्ठी के उद्देश्यों एवं आवश्यकता पर अपना विचार प्रकट किया, जबकि समापन सत्र में पूर्णिया विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव डॉ. घनश्याम राय, प्राचार्य डॉ. वसुंधरा पाण्डेय, डॉ. पुष्पलता हँसदक, अनिल कुमार, डॉ. कन्हैया प्रसाद, डॉ. अमित रंजन, धर्मेन्द्र कुमार, रमेश कुमार, डॉ. रजनीश कुमार यादव आदि ने विचार अपने-अपने व्यक्त किये।

आगत अतिथियों का स्वागत सारण जिला माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष बिनोद कुमार यादव ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन संघ के सचिव विद्यासागर ने की। सेमिनार को सफल बनाने में अधिवक्ता सुबोध कुमार, डॉ. ब्रजकिशोर, डॉ. संजय कुमार राय, डॉ. विकास कुमार, राकेश कुमार, रूपेश कुमार, राजू पासवान, मिल्की, सुमन, अनुपमा, जूही राय ने अहम भूमिका अदा की।

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