HomeLifestyleसूरत की ऊर्जा-दक्ष एमएसएमई इकाइयों को मिल सकती है ब्‍याज सब्सिडी 

सूरत की ऊर्जा-दक्ष एमएसएमई इकाइयों को मिल सकती है ब्‍याज सब्सिडी 

गुजरात, विशेषकर सूरत में कपड़ा उत्‍पादन करने वाले कुटीर, लघु एवं मध्‍यम उद्योग (एमएसएमई) अगर अपने कार्य संचालन में किफायती ऊर्जा वाली प्रौद्योगिकियों को अपना लें तो उन्‍हें ब्‍याज सब्सिडी प्राप्‍त हो सकती है। ‘अंतर्राष्‍ट्रीय एमएसएमई दिवस’ पर गुरुवार को सूरत में ‘ऊर्जा-दक्ष प्रौद्योगिकी एवं वित्‍त’ विषय पर आयोजित एक कार्यशाला में अधिकारियों और विशेषज्ञों ने यह बात कही।

कार्यशाला में कपड़ा उद्योग (टेक्‍सटाइल) से जुड़ी एमएसएमई के प्रतिनिधियों, नीति निर्धारकों, ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकी प्रदाताओं और वित्‍तपोषण एजेंसियों के 112 से ज्‍यादा हितधारकों ने भाग लिया। यह कार्यशाला मुख्‍य रूप से ऊर्जा-दक्ष प्रौद्योगिकियों को अपनाने और एमएसएमई के सतत रूपांतरण के लिये जरूरी वित्‍तीय सहयोग के विषयों पर केन्द्रित थी।

जेडा की वरीय परियोजना अधिकारी अमिता पंड्या ने पूरे गुजरात की औद्योगिक इकाइयों में ऊर्जा-दक्ष प्रौद्योगिकियों को अपनाने में सहयोग देने के प्रयासों को रेखांकित किया। उन्‍होंने कहा, ‘‘हम भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) जैसे वित्‍तीय संस्‍थानों से ऊर्जा-दक्ष प्रौद्योगिकियों को अपना रही टेक्‍सटाइल एमएसएमई को ब्‍याज सब्सिडी उपलब्‍ध कराने को लेकर बातचीत कर रहे हैं।’’

कपड़ा मंत्रालय में सहायक निदेशक सिद्धेश्‍वर डोम्‍बे ने सूरत के कपड़ा उत्‍पादन क्षेत्र में एमएसएमई के उल्‍लेखनीय योगदान का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘कपड़ा बुनने और उसके प्रसंस्‍करण में नयी प्रौद्योगिकी के इस्‍तेमाल से लागत में कमी आती है और इससे वे एमएसएमई इकाइयां सरकार की विभिन्‍न योजनाओं का लाभ लेने के योग्‍य बन जाती हैं। इसके अलावा क्षमता का उन्‍नयन भी एमएसएमई मालिकों और कामगारों, दोनों के ही लिये लाभदायक होता है।’’

गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी), सूरत की क्षेत्रीय अधिकारी डॉक्‍टर जिग्‍नासा ओज़ा ने एमएसएमई के सतत विकास के महत्‍व को रेखांकित किया। उन्‍होंने कहा, ‘‘देश के आर्थिक विकास में एमएसएमई इकाइयों का उल्‍लेखनीय योगदान है। उनके सतत विकास के लिये नयी प्रौद्योगिकियां और वित्‍तपोषण के अवसर बेहद महत्‍वपूर्ण हैं। इस कार्यशाला का उद्देश्‍य सरकारी एजेंसियों, एमएसएमई इकाइयों और ऊर्जा-दक्ष प्रौद्योगिकियों एवं वित्‍तीय सहयोग प्रदाताओं को परस्‍पर जोड़ना है।’’

एसजीटीपीए के अध्‍यक्ष जितेंद्र वखारिया ने सूरत के औद्योगिक क्षेत्र में एमएसएमई के सतत विकास का उल्‍लेख किया। उन्‍होंने कहा, ‘‘सूरत के औद्योगिकी क्षेत्र की प्रगति में 80 प्रतिशत से ज्‍यादा हिस्‍सेदारी एमएसएमई की है। शहर के विकास में कपड़ा क्षेत्र की भूमिका अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है। इस विकास में केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों के साथ-साथ जेडा और जीपीसीबी जैसे एजेंसियों का भी योगदान है।’’

ब्‍यूरो ऑफ एनर्जी एफिशियेंसी के विशेषज्ञ अजित उपाध्‍याय ने कहा, ‘‘बुने हुए रेशे के उत्‍पादन में गुजरात का योगदान सबसे ज्‍यादा है। देश में बनाये जाने वाले डेनिम कपड़े के उत्‍पादन में गुजरात की 60 से 70 प्रतिशत की हिस्‍सेदारी है। इस मामले में वह देश में पहले जबकि विश्‍व में तीसरे स्‍थान पर है।’’

वर्कशॉप में भारत को वर्ष 2070 तक नेट-जीरो का लक्ष्‍य प्राप्‍त करने में मदद के लिये कपड़ा उद्योग क्षेत्र को पर्यावरण के अनुकूल बनाने की आवश्‍यकता पर भी बल दिया गया। डब्‍ल्‍यू आर आई में जलवायु शाखा के एसोसिएट प्रोग्राम डायरेक्‍टर सुब्रत चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘भारत और पूरी दुनिया के उद्योग तथा एमएसएमई इकाइयां जलवायु परिवर्तन के बुरे परिणामों के खतरे से जूझ रही हैं। उसी हिसाब से एमएसएमई इकाइयों में कम कार्बन उत्‍सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों के प्रयोग को आम चलन में लाने पर काम किया जा रहा है। साथ ही भारत के जलवायु सम्‍बन्‍धी लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने और वर्ष 2070 तक भारत को नेट-जीरो राष्‍ट्र बनाने के लक्ष्‍य को पूरा करने के लिये वित्‍तीय सहायता उपलब्‍ध कराने की दिशा में प्रयास जारी हैं।’’

य‍ह कार्यशाला डब्‍ल्‍यू आर आई इंडिया द्वारा एरिस चैरिटेबल फाउंडेशन के क्‍लाइमेट रेजीलिएंट एम्‍प्‍लॉईज फॉर ए सस्‍टेनेबल टुमॉरो (क्रेस्‍ट) के सहयोग से शुरू की गयी पहल राइज (रेजीलिएंट, इंक्‍लूसिव एण्‍ड सस्‍टेनेबल एंटरप्राइजेज) सूरत का एक प्रमुख अंग है। पिछले साल 28 अगस्‍त को शुरू की गयी ‘राइज सूरत’ पहल का प्राथमिक उद्देश्‍य सूरत के कपड़ा उद्योग क्षेत्र से जुड़ी कम से कम 50 एमएसएमई और 500 कामगारों को भारत में कम कार्बन उत्‍सर्जन वाले औद्योगिक विकास के लिये जरूरी जानकारी, क्षमता और उपकरणों से लैस करना है।

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