छठ व्रत हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह व्रत सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है और चार दिनों तक चलता है। यहाँ छठ व्रत करने की पूरी प्रक्रिया सरल भाषा में बताई गई है:
छठ व्रत का तरीका
1. नहाय-खाय (पहला दिन)
- व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है।
- इस दिन व्रती स्वच्छ और शुद्ध होकर नदी, तालाब या स्नानागार में स्नान करते हैं।
- घर में साफ-सफाई करके प्रसाद बनाते हैं।
- सामान्यत: अरवा चावल, कद्दू और चना दाल का खाना खाया जाता है।
- यह दिन शुद्धता और संयम का प्रतीक होता है।
2. खरना (दूसरा दिन)
- अगले दिन व्रती सुबह से निर्जल उपवास शुरू कर देते हैं।
- शाम तक व्रती बिना पानी और भोजन के रहते हैं।
- शाम को गुड़ और चावल से बनी खीर और फल का प्रसाद तैयार करके सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।
- यह दिन उपवास और संयम का प्रतीक है।
- रात भर व्रती व्रत रखते हैं और अगली सुबह अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने तक उपवास जारी रहता है।
3. अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य (तीसरा दिन)
- तीसरे दिन व्रती नदी या तालाब के घाट पर सूर्यास्त के समय सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं।
- घाटों पर घी का दीपक, फल और फलाहार अर्पित किया जाता है।
- यह दिन श्रद्धा, भक्ति और सामूहिक पूजा का प्रतीक है।
4. उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य और व्रत समाप्ति (चौथा दिन)
- व्रत का अंतिम दिन व्रती सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं।
- घाट पर जल में खड़े होकर सूर्य को पानी अर्पित किया जाता है।
- इस दिन स्नान, प्रसाद और भजन-कीर्तन के साथ व्रत का समापन होता है।
- व्रती शुद्ध मन और भक्ति भाव से अपने परिवार और समाज के कल्याण की कामना करते हैं।
छठ व्रत के नियम और टिप्स
- व्रत के दौरान शुद्ध और सरल आहार ग्रहण करें।
- निर्जल उपवास का पालन श्रद्धा और शक्ति अनुसार करें।
- घाट और पूजा स्थल पर साफ-सफाई और अनुशासन बनाए रखें।
- व्रत में सूर्य देव और छठी मैया के गीत गाने और भजन करना शुभ माना जाता है।
- परिवार और समुदाय के साथ सामूहिक पूजा करने से व्रत और भी फलदायक होता है।



