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बिहार: भारत की दार्शनिक नींव का जन्मस्थल और विरासत का संगम – उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

मुजफ्फरपुर, बिहार: भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज बिहार को भारत की दार्शनिक नींव का जन्मस्थल बताते हुए इसकी गौरवशाली ऐतिहासिक, बौद्धिक और संवैधानिक विरासत का स्मरण किया। मुजफ्फरपुर स्थित ललित नारायण मिश्रा कॉलेज ऑफ बिज़नेस मैनेजमेंट के स्थापना दिवस समारोह में जनसभा को संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “यह केवल एक राज्य नहीं, यह भारत की आत्मा है, जहाँ बुद्ध और महावीर का बोध, चंपारण का प्रतिरोध और डॉ. राजेंद्र प्रसाद का संविधान निर्माण, सब एक ही धरातल पर मिलते हैं।”

ज्ञान और आध्यात्म का केंद्र: बिहार

उपराष्ट्रपति ने बिहार की भूमि को ज्ञान और आत्मिक जागरण का प्रेरणा स्रोत बताया, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ और भगवान महावीर को आत्मिक जागरण हुआ। उन्होंने कहा, “यही भूमि भारत की दार्शनिक नींव का जन्मस्थल है।” श्री धनखड़ ने जोर देकर कहा कि बिहार वह भूमि है जहाँ प्राचीन ज्ञान, सामाजिक न्याय और आधुनिक आकांक्षाएं साथ-साथ चलती हैं, और इसकी गाथा ही भारत को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाएगी।

चंपारण सत्याग्रह: राष्ट्र-निर्माण की नई व्याकरण

उपराष्ट्रपति ने चंपारण सत्याग्रह को राष्ट्र-निर्माण की नई व्याकरण की शुरुआत बताया। उन्होंने कहा कि 1917 में महात्मा गांधी ने चंपारण में अपना पहला सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर किसान की समस्या को राष्ट्रहित का आंदोलन बना दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि चंपारण ने न केवल औपनिवेशिक अन्याय को चुनौती दी, बल्कि शासन की एक नई व्याकरण की शुरुआत की, जो सत्य, गरिमा और निडर सेवा पर आधारित थी।

नालंदा: वैश्विक शिक्षा का अद्वितीय केंद्र

प्राचीन बिहार को वैश्विक शिक्षा का केंद्र बताते हुए, श्री धनखड़ ने नालंदा, विक्रमशिला और ओदांतपुरी जैसे विश्वविद्यालयों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि पांचवीं शताब्दी में नालंदा एक आवासीय विश्वविद्यालय था, जहाँ चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत और मध्य एशिया से 10,000 विद्यार्थी और 2,000 आचार्य ज्ञान अर्जित करने आते थे। उन्होंने यह भी कहा कि “आज भी ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड और कैम्ब्रिज को मिला लें, तो नालंदा की बराबरी नहीं हो सकती।”

उपराष्ट्रपति ने 1192 के आसपास बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी को जलाए जाने की घटना को ज्ञान की परंपरा पर प्रहार बताया, लेकिन साथ ही कहा कि “ज्ञान की ज्योति बुझी नहीं — भारत आज भी विश्व का सबसे बड़ा ज्ञान भंडार है।”

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भारतीय ज्ञान परंपरा
श्री धनखड़ ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सराहना करते हुए कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली हमेशा मूल्य-आधारित रही है और चरित्र निर्माण करती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य कुशल पेशेवरों, संतुष्ट नागरिकों, रोजगार उत्पन्न करने वालों और ज्ञानी मानवों को तैयार करना है।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद और जयप्रकाश नारायण की विरासत
उपराष्ट्रपति ने बिहार के सपूत और भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की भूमिका को रेखांकित किया, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन और संविधान निर्माण में उच्चतम मानक स्थापित किए। उन्होंने कहा कि संविधान सभा में बहस, संवाद, विमर्श और मनन हुआ, जिससे लोकतंत्र की सच्ची भावना परिलक्षित हुई।
सामाजिक न्याय पर प्रकाश डालते हुए श्री धनखड़ ने मंडल आयोग के कार्यान्वयन और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने को बिहार के योगदान का प्रतीक बताया।

उपराष्ट्रपति ने 25 जून को “भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय” बताते हुए आपातकाल का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उस समय लोकतंत्र की ज्योति जलाने का कार्य बापू जयप्रकाश नारायण ने किया, जिनकी “संपूर्ण क्रांति” राष्ट्र के पुनर्जागरण की पुकार थी।

इस कार्यक्रम में बिहार सरकार के उद्योग मंत्री श्री नीतीश मिश्र, अंबेडकर यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर के कुलपति प्रोफेसर दिनेश राय और एलएन मिश्रा कॉलेज के निदेशक श्री मनीष कुमार सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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