आज पवित्र सावन की पहली सोमवारी से हम आपके लोकप्रिय वेब पोर्टल पर बिहार के सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईपीएस, देश के प्रसिद्ध कथाकार, कवि, साहित्यकार श्री ध्रुव नारायण गुप्त के फेसबुक वाल की अभिव्यक्तियों को संकलित करने का लघु प्रयास कर रहें।
आदरणीय श्री ध्रुव नारायण गुप्त सम्प्रति देश की सबसे बड़ी स्व-नियामक इकाई “वेब जर्नलिस्ट्स स्टैंडर्ड ऑथोरिटी” (वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया) के मानद वरिष्ठ आईपीएस सदस्य हैं। – संपादक
श्री ध्रुव नारायण गुप्त
“आज सावन का आरम्भ हो रहा है। सावन प्रकृति की पुनर्रचना का समय है। यह वह महीना है जब पृथ्वी और बादल मिलकर सृष्टि और हरियाली के नए-नए तिलिस्म रचते हैं। यह खेतों में फसल , आंखों में सपने और रगों में रूमान बोने का मौसम है। शास्त्रों में यदि इसे भगवान शिव का महीना कहा गया है तो यह अकारण नहीं है। सावन प्रकृति के सजने-संवरने का मौसम है और शिव प्रकृति के देवता। प्रकृति के विराट रूपक। पर्वत उनका आवास है। वन उनकी क्रीड़ाभूमि। नदी उनकी जटाओं से निकलती है। योग क्रियाओं से वे वायु को नियंत्रित करते हैं। उनकी तीसरी आंख में अग्नि का तेज और माथे पर चंद्रमा की शीतलता है। सांप, बैल, मोर, चूहे और सिंह उनके परिवार के सदस्य हैं। उनके पुत्र गणेश का सर हाथी का है। उनका त्रिशूल प्रकृति के तीन गुणों – रज, तम और सत का प्रतीक है। उनके डमरू में प्रकृति का आदिम संगीत है। उनकी पूजा प्रकृति में बहुतायत से उपलब्ध बेलपत्र, भांग की पत्तियों,धतूरे, कनैल के फूलों से की जाती है। शिव प्रकृति की तरह ही निश्छल, भोले, औघड़ दानी और कल्याणकारी हैं।”
“शिव का यह सावन हम सबके लिए यह संदेश है कि प्रकृति से तादात्म्य स्थापित कर जीवन में सुख-शांति, सरलता, शौर्य, अध्यात्म सहित कोई भी उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है। यह चेतावनी भी कि प्रकृति के साथ अनाचार या उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ने का हासिल प्रलयंकारी तांडव ही होने वाला है।”
(फेसबुक वाल से)