HomeDhruv Cornerध्रुव कार्नर: गर्दिश-ए-सागर - ए- खयाल हैं हम - ध्रुव नारायण गुप्त

ध्रुव कार्नर: गर्दिश-ए-सागर – ए- खयाल हैं हम – ध्रुव नारायण गुप्त

लोकप्रिय वेब पोर्टल पर बिहार के सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईपीएस, देश के प्रसिद्ध कथाकार, कवि, साहित्यकार श्री ध्रुव नारायण गुप्त के फेसबुक वाल की अभिव्यक्तियों को संकलित करने का लघु प्रयास कर रहें, इसी कड़ी में प्रस्तुत है दिल्ली के मेहरौली स्थिति जमाली- कमाली मस्जिद और मकबरे पर...... आपकी अभिव्यक्ति।

 

लोकप्रिय वेब पोर्टल पर बिहार के सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईपीएस, देश के प्रसिद्ध कथाकार, कवि, साहित्यकार श्री ध्रुव नारायण गुप्त के फेसबुक वाल की अभिव्यक्तियों को संकलित करने का लघु प्रयास कर रहें, इसी कड़ी में प्रस्तुत है दिल्ली के मेहरौली स्थिति जमाली- कमाली मस्जिद और मकबरे पर…… आपकी अभिव्यक्ति।

 

आदरणीय श्री ध्रुव नारायण गुप्त सम्प्रति देश की सबसे बड़ी स्व-नियामक इकाई “वेब जर्नलिस्ट्स स्टैंडर्ड ऑथोरिटी” (वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया) के मानद वरिष्ठ आईपीएस सदस्य हैं। – संपादक

 

 

श्री ध्रुव नारायण गुप्त, सेवानिवृत्त आईपीएस
मध्यकालीन भारत के स्थापत्य के कुछ एक बेहतरीनl नमूनों में दिल्ली के मेहरौली की जमाली-कमाली मस्ज़िद और उस मस्जिद से लगे जमाली और कमाली के मक़बरे भी हैं। जमाली के नाम से प्रसिद्द शायर और सूफी संत हज़रत शेख हमीद बिन फजलुल्लाह उर्फ़ जमाल खान सिकंदर लोदी के शासनकाल में भारत आए थे। लोदी उनकी कविताओं के ऐसे मुरीद हुए कि उन्हें अपना दरबारी कवि बना दिया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ‘गुरुग्रंथ साहिब’ में बाबा फ़रीद के नाम से लिखी गई कवितायें वस्तुतः सूफी संत जमाल ने लिखी थी। उस दौर में जमाली साहब की लोकप्रियता ऐसी थी कि लोदियों के बाद मुग़ल सम्राट बाबर और हुमायूं के दरबारों में भी उनकी जगह और प्रतिष्ठा सुरक्षित रही। हुमायूं ने उनकी मौत के बाद उनका मक़बरा बनवाया था। उनके बगल में कमाली का मक़बरा है। कमाली को कोई उनका भाई कहता है, कोई उनका भतीजा, कोई शागिर्द और कोई उनकी बीवी।
अपने दौर में इस परिसर की लोकप्रियता क़ुतुब मीनार से भी ज्यादा हुआ करती थी। आज यहां अजीब-सा सन्नाटा हुआ करता है। अरसे से इस इमारत के भूतिया होने और यहां रात में जिन्नों की महफ़िलें लगने की अफवाहों के कारण लोग यहां कम ही आते हैं। मैंने कई बार संत कवि के इस स्मारक में पसरे सन्नाटे, रहस्यमयता और सुकून को निकट से महसूस किया है। जमाली के मकबरे पर दर्ज़ कुछ शेर मन मोह लेते हैं। उनमें से एक शेर देखिए – रंग ही रंग, खुशबू ही खुशबू / गर्दिश-ए-सागर – ए- खयाल हैं हम। शायर जमाली का लिखा साहित्य अब उपलब्ध नहीं है या शायद कहीं छिपा हुआ है। इन्हें तलाशने की कोई कोशिश भी नहीं हुई है। अगर उन्हें खोजा जा सके तो हमारे मध्यकालीन साहित्य में कुछ और अध्याय ज़रूर जुड़ेंगे।

 

फेसबुक वाल से

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments